रेस्टोरेंट का खाना

रेस्टोरेंट का खाना


 कंफ्यूजन था मैं मेनू देखकर
क्या खांऊ, क्या न खांऊ,
मेनू पढ़कर घूम गया सिर
यहाँ खांऊ या कही जांऊ।

पलटते रहा पन्ना बेसब्री से
मिल जाये कोई अच्छा सा,
तमाम पन्ने पलट डाले
एक-एक डिस पढ़ डाले।

घूम फिरकर बस उंगली
एक जगह थम जाती
दाल चावल सब्जी रोटी
रायता संग सलाद भी खाते।

और मिल जाये ठंडी लस्सी
जैसे तैसे खाना का किया 
एक घंटे का इंतजार किया।
जैसे-जैसे समय बीतता 
भूख दुगनी होती गई
आया जब लजीज व्यंजन 
मन बैठा एक सिटी हुई।

ओह अब तो खाएंगे
खाना खाने जब हम बैठे 
खाना न हम खा पाए
खाना देख भूख मिट गई
रेस्टोरेंट भुल न पाएं।


©® $h¥@m


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