कविता-सफलता की सीढ़ी
आराम नही सिर्फ चलते रहना है सतत
सौहरत की मंजिल आसान नही यहाँ
असफलताओ का दिल से करो मनन।
मंजिल के कदम रूक न जाये बीच मे
पग न डिगे चुनौती में कभी हार के
दूर न हो सपने नींद से जागने में कभी
मंजिल कदम चूमेगी मेहनत के आगे।
हुनर कर मजबूर, सब आसान हो जाना।
असफलताओ से बहुत सीखते जाना है
लक्ष्य हो दूर कितना, घबराना नही राहो में
खुद पर भरोसा रख, अरमान झूलेगा बांहों में।
पथरीले रास्ते भी, मंजिल पाना सिखलाते है
सीधे साफ रास्तों में, हुनर कहाँ आते है
नन्ही सी चींटी हमें जीवन जीना सिखलाती है
अनुशासन के दम पर बड़े काम कर जाती है।
मकड़ी बुनती ताना बाना अपना हुनर लगती है
अपने अंतिम कोशिश तक सारा जोर लगती है
जिंदा है तो जिंदादिली की पहचान होना चाहिए
तन ने साँसें चलती ऐसा कुछ काम होना चाहिए।
तूफान भरी हो साँसों में, कामयाबी के बुलंद इरादे
पग चल पड़े मंजिल पर, लक्ष्य हमारा कदम चूमे
श्याम नही पथ रुकने का, आगे हमको जाना है
जीवन का मर्म यही है, बस मंजिल हो पाना है।
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श्याम कुमार कोलारे
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