कविता- नारी तू नारायणी

कविता- नारी तू नारायणी


नारी नही कमजोर तू, नही लाचार है अब
शक्ति है असीम, पहचाने स्वयं को जब
हुँकार भरदे गगन में, तोड़ सब सीमाओं को
परचम तेरा लहरेगा, चूमले ऊँची चोटिन को।

नही तू अबला मान स्वयं को, तू है सबला 
दिखा दे अपने अंदर की अदृश्य ताकत को 
ज्वालामुखी सी अंगारे है, भस्म करने की शक्ति है
जलती अग्नि सा तेज है, भयंकर सा तू पावक है।

रानी झांसी, दुर्गावती बन, दिखाया शौर्य को
मदर टैरेसा के रूप में, सेवा लगाया जान को
कल्पना बन नाप लिया,धरती से आसमान को
सावित्री की शिक्षा, बताया नारी अधिकार को।

नर को नारायण करदे, अद्भुत शक्ति है तुझमे 
नया सृजन की जननी है, आकर देती सृष्टि में
जीवन है तुझसे ही जीवन दायिनी की खान है
माँ बिन नहि है जीवन,ये प्रकृति का नियमान है।

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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिंदवाड़ा म.प्र.
मोबाइल 9893573770

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