इस बड़े ब्रह्माण्ड में, एक छोटा सा मेरा गोला
यह गोला में एक कोना पर, दिखता मेरा देश
देश के नक्शे में छोटा है, दिखे प्रदेश का वेष
इनमे भी जिला का स्थान, नंबर है अविशेष।
प्रखंडो में बटा हुआ, कई तहसीलों का मेल
कस्बा का स्थान है, छोटा दिखता मेरा नीड
उस नीड में मेरा कमरा,एक छोटा सा कोना
उस कोने में मेरा अस्तित्व, एक बिन्दु होता।
इतना सा मेरा स्थान, फिर भी दम्भ है विशाल
मैं के चक्कर मे पड़कर, खुद को किया महान
एक बार गर पीछे देखें, खुद को देख न पाएंगे
खुली आँखों से भी, खुद को पहचान न पाएंगे।
बड़ा दम्भ भरा है अन्दर, अहंकार का बना घर
अपने काम ऐसे बतायें,जैसे दुनिया यही चलाये
साँसे भी तो लिया है हमने, दूसरों के उपकार से
पानी बहता लहुँ बनकर, प्रकृति के परिदान से।
बुद्धि है बड़ी महीन सी, इस बड़े से ब्राह्मण में
मैं तो कुछ बचा भी नही, औरो की पहचान में
दम्भ न करें कभी भी, कुछ भी नही यहाँ तेरा
ईश्वर की सब संतान है, यही अस्तिव है मेरा।
लेखक
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मोबाइल 9893573770
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