कविता - प्रेम...एक पवित्र एहसास

कविता - प्रेम...एक पवित्र एहसास

प्रेम एक जज़्बा है,मगर कैसा जज़्बा???

सागर से गहरा,आसमां से ऊंचा....

हमारे एक मित्र ने हमसे पूछा

क्या है प्रेम की परिभाषा???

हमने कहा...

प्यार वरदान है परमात्मा का

एक ख़ूबसूरत एहसास है आत्मा का

चिराग़ है अंधेरे का

सूरज है सवेरे का

महक है फूलों भरी बगिया की

और है एक प्यारी सी अदा भी

जो है भी,और नहीं भी

क्यूंकि ये दिखता नहीं...

पर आधार है हर रिश्ते का

प्रारब्ध है जिंदगी का

जीवन के हर पन्ने में अनेकों रूपों में बहता है

और

इस जहां से जाने के बाद भी

आपको इस जहां में ज़िंदा रखता है


दिल में ये रहता है

भावनाओं में बहता है

कैसे परिभाषित करूं इस एहसास को

पल पल महकाए जो रुह और सांस को

ना किसी दिन का मोहताज,

ना किसी मौके का


मासूम किसी नन्हें की किलकारी सा

शीतल चंदा की चांदनी सा

जांबाज़ सिपाही की अटल देशभक्ति सा

ममता से लवरेज़ मातृ शक्ति सा

कैसे बयां करूं इस दास्तां का

जो पाक एहसास है

ख़ुदा की बंदगी सा......

------------------------------------------------------

    

    लेखक - मधु माहेश्वरी गुवाहाटी असम

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ