नन्हें नन्हे कदम से चलते, करते बहुत ठिठोली
तुतलाती सी आवाज हमारी,प्यारी सी थी बोली।
माँ-बाबा की आँखों के तारे, दादी नानी के प्यारे
प्यारा बचपन बहुत सुखद था, धूम मचाते सारे।
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दिन भर गांव में घूमा करते, चुनते रहते खट्टे बेर
अमराई की शोभा हम ,दिनभर करते रहते शोर।
न पढ़ाई की कोई चिंता थी, न कोई थी मजबूरी
उछल-कूद कर धूम मचाते, बच्चों की थी टोली।
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चक्कों के पीछे भागते, कंकर के थे खेल निराले
पेड़ो की डाली था झूला, नटखट थे दोस्त सारे।
पत्तो की पुंगी की धुन, बचपन में बहुत भाती थी
मम्मी की डाँट भी, बहुत खुशियाँ दे जाती थी।
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बात- बात में रूठा करते, बड़े जतन से मनाना
बड़ा सुखद था मम्मी का, प्यार से गले लगाना।
जब मर्जी तब खेलना था, न कोई रोका-टोकी
जब माँगे माँ से खाना , तुरंत मिलती थी रोटी।
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दिन शुरू खेल से होता, रात भी खेल से होती
सपने में खेल ही होता,जैसे खेल साथ मे सोता।
मिठाई तो पसंद थी, पीपरमेंट भी कम नही थी
मेला का आनंद निराला, खिलौने की चाह थी।
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सबसे खूब ठिठोली करना, प्यार से गले लगाना
बड़ी शरारत करने पर भी, बच्चे है से बच जाना
सुखद बचपन भूल न पाएं, चाहे हो जाएं पचपन
यादें अब भी खूब सुहाती, हमारा प्यारा बचपन।
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लेखक
श्याम कुमार कोलारे
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