कविता - वक्त

कविता - वक्त



वक्त-वक्त की बात होती है,
किसी का वक्त सोना तो, 
किसी का वक्त मिट्टी होती है,
जो वक्त के साथ चल देता है,
वक्त उसके साथ चल देता है।

कई रूप में वक्त हमारे पास है,
कभी समय कभी क्षण साथ है,
वक्त जिस पर मेहरवान हो जाये,
उसका जीवन मानो तर जाये।

जो वक्त के पीछे हो रह जाता,
वो जीवन सब कुछ खो जाता,
कोई वक्त क्षण भर ढूंढ़ता है,
किसी का वक्त पल ढूढ़ता है।

जो शख्स वक्त को करे बर्बाद,
वक्त उसे करता बर्बाद है,
जो वक्त को सही वक्त पर,
पहचान लेता है,
वक्त उसे पहचान लेता है।

वक्त की कदर करने वाले,
शीघ्र शिखर पहुँच जाते है,
चाहे कितना ही तेज चलो, 
वक्त के साथ न चलने वाले, 
जीवन मे पीछे रह जाते है।
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लेखक/कवि
श्याम कुमार कोलारे
छिन्दवाड़ा, मध्यप्रदेश
मोबाइल 9893573770

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