कविता - आंखों का नूर

कविता - आंखों का नूर


पथराई अखियन से देखे,नूर कहीं जैसा चला गया 

आस भरी निगाहों से ये,प्रीत ममता का बेह गया।


कलेजे का टुकड़ा बिछडा,बहुत दिन गए हैं बीत 

याद बसायें मन में सारी,दिल में उमड़ रही है मीत।


कही दूर बसाकर अपना देश,प्रीत ने बनाया अलग सा वेश

चमक भरी गलियाँ भुला गई,कच्ची पड गई ममता की लेश।


नई मंजिल की आस में,ऊँचें घरौंदे में बसती साँसें

दिन-रात का फेर चले हैं ,हरक्षण बदल रहे है पाँसें।


ममता के आँचल से बंधा है,इससे क्यों दूर है कतरा!

सिर पर हाथ रहेगा जब तक,टलता रहेगा हरपल खतरा ।


आश भरी निगाहें को जब,दोबारा प्रीत गर मिल जाए

जीने की खुशियां फिर से,आशियाने में नूर आ जाए।

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लेखक/कवि

श्याम कुमार कोलारे

सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

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