किताबो से दोस्त हुई है जबसे
तन्हाई तरसती है हरपल
मिलने को मुझसे l
ज्ञान की देवी विद्या की मूरत
गुरु की दिखे इसमें सूरत
सही गलत का पाठ पढ़ाती
संस्कारी वो मुझे बनाती l
इसमें मिलता ज्ञान भंडार
विद्या की है सुन्दर खान
ज्ञान विज्ञान इतिहास बताती
अपनी मूल पहचान कराती l
बहुदुर साहस जिम्मेदारी
कर्तव्य परायण प्रेरणाकारी
भूत भविष्य वर्तमान का ज्ञान
नहीं है इससे कुछ अनजान l
मानव को ये बुद्ध बनाती
ज्ञानवान से पुष्ट कराती
ये है सच्चा सखा- साथी
जैसे तेल संग जले है बाती l
जड़ को चेतन ये करदे
निर्बलमन में जोश ये भरदे
किताब ज्ञान है हरदम देता
बदले में न कुछ भी लेता l
इसकी कद्र जिसमे भी करली
धरती तो क्या आकास भी तरली
सबसे बड़ी ज्ञानी और ध्यानी
इससे अधूरी शिक्षा की मानी
किताब को सब जीवन में लाओ
अपना जीवन पूर्ण बनाओं l
कवी / लेखक
श्याम कुमार कोलारे
0 टिप्पणियाँ
Thanks for reading blog and give comment.