सूरदास निकालते है खामी मेरे चेहरे में,
बेवफा को शिकायत
है कि मैं दगा देता हूँ l
कायर खोजते है
परिश्रम मेरे जीवन में,
शकी को शिकायत
है कि मैं गलत देखता हूँ l
लंगड़ा नुक्श
निकालता है मेरी चाल में,
लूला को शिकायत
है मैं खराब चलता हूँ l
मंदबुद्धि
निकलते है कमी मेरी ज्ञान में,
काना को शिकायत
है मैं खराब सुनता हूँ l
सुन्दरता रखता
हूँ हमेशा व्यवहार में,
सुशील बनने के
नुस्के औरों को सीखाता हूँ l
व्यवहार कुशलता
झलकता स्वाभाव में,
विनम्र होने की
खुशबू सबको बाटता हूँ l
साधारण व्यवहार
और बहादुरी स्वाभाव में,
कर्तव्यनिष्ठ
होने का जस्वा रखता हूँ l
सदा मिठास बनी
रहे मेरी वाणी में,
सही आदमी बनने
की कोशिश करता हूँ l
लेखक/ कवी
श्याम कुमार कोलारे
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