उदारमयी नारी

उदारमयी नारी




हे! उदार करुणामयी नारी तू,
रूप दया प्रेम दया का सागर।
साकार प्रतिमा,शलील उदारमय घाघर।
अक्षय शान्ति सरोवर हृदय मे भर,
,बहन भाई से अतुल स्नेह करे।
अपने पीहर का सुख खोकर,
मां का मृदुल स्पर्श भुलाकर,
पिताका सुखद प्यार दिल मे रखकर,
अपने नाम का अस्तित्व मिटाकर,
हे करूणामयी नारी तू मिशाल बनकर,
ससुराल के घर को आबाद करे।
जीवन की अपार निधि त्यागकर,
पत्नि बन अपना सर्वस्व पति को दान करे।
ममतामयी माता बनकर,
तू संपूर्ण जीवन का त्याग करे,
हे!उदार करुणामयी नारी तू,
विविध रूप धरा पर धरकर,
कभी मां बेटी पत्नि ,सास बहु ननद का रूप धरे।
सदियो से तूने दुखो को झेला,
पुरूष प्रधानयुग मे रहकर,
दुराचारियो की पीडा सहकर,
मौन रही तू बलिदान देकर,
लक्ष्मी बनी तू निर्धन रहकर,
बाबा साहब ने उपकार किया है तुझ पर,
समता शिक्षा न्याय का अधिकार देकर।
पारस नमन करता है जननी तुझे,
हृदय से सम्मान देकर।
हे करूणा ममता मयी नारी तू,
रूप दया प्रेम दया का सागर।
साकार प्रतिमा शलील उदार मय घाघर।।



लेखक/कवि
डॉ परशुराम आठनेरिया
इंदौर (म.प्र.)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ