कविता : इंसान

कविता : इंसान

इंसान







इंसान का इन्सान से बड़ा विचित्र नाता है  

इन्सान, इंसान के लिए अरमान सजाता है  

कोई इंसान की खुसी के लिए, तो कोई

इंसान के दुःख के लिए सर्वस्व लगता है l

बड़ा गजब का इंसान ने बना रखा है नाता

किसी के मन में आ जाये तो कुछ नहीं भाता

कोई किसी को बनाने सब कुछ मिटा देता है

कोई किसी को गिराने सब कुछ लुटा देता है l

चाहत भी वेपनाह, और आहत भी बेसुमार

इंसान, इंसान को कभी भगवान बना देता है

ऊपर से दिखे फ़रिश्ता, अन्दर से सैतान कोई

अपने कर्म से धरती को शमसान बना देता है l

काम ऐसा भी करे है, याद करे दुनिया सारी

अपने जीते जी दुनिया को स्वर्ग बना देता है

जस्बात ममता करुना संवेदना की खान इंसा  

कभी अपनों कर्म से स्या कर्जदार बना देता हैl

इंसान, इंसान के हरदम काम आता है

इंसान ही इंसान का डर दूर भगता है

प्रज्ञा विवेक बुद्धि इंसान को भाति है  

सूझबूझ और तर्कपूर्ण मर्म सहाती है l

फिर क्यों इंसान कुकर्म में लग जाता है  

भला इंसान कहलाने में भी शर्म पाता है

ईश्वर की बड़ी विहंगम अमूल्य कृति इंसान

आपने कर्मो से खुद ही बदनाम हो जाता है l

 

*लेखक / रचनाकार*

श्याम कुमार कोलारे

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