कविता : खून का रिश्ता

कविता : खून का रिश्ता

 विश्व रक्तदान दिवस पर आधारित रचना 

खून का रिश्ता                                             


 








जीवन है एक रिश्ता का जंजाल

यहाँ होते नित्य रिश्ता से पहचान

यहाँ हर दिन नए रिश्ते बनते है

और बने रिश्ते भी बिखर जाते है

रिश्तो का रिश्तो से बड़ा अहम है रिश्ता  

जो रिश्तो की कद्र करे वो बड़ा फरिस्ता

खून का रिश्ता सभी से जुदा होता है

जिस रिश्ते में लहू कसी से जुड़ा होता है l

 

जन्म देने वाली माँ और रक्त दाता 

मनुष्य को नया जन्म देता है

रुधिर दाता देकर अपना खून

जीवन को दे नया जन्म का प्रसून  

खून का कण नस जब चल जाता है

रिश्ता खून का सदा बना जाता है

खून तो खून है नसों में बहता है

न जाने कहाँ-कहाँ क्या सहता है?

 

कतरा-कतरा लहू का अमूल्य है

जीवन इसी से चले ये प्रतुल्य है

खून का न होता कोई धर्म

मनुष्य का मनुष्य के लिए है मर्म

लहूँ का मूल्य तब समझ आता है  

जब किसी मोड़ पर मनुष्य का

लहू का से काम पड़ जाता है  l

 

लहू देकर दाता जीवन ज्योति बचायेगा  

मनुष्य का लहू मनुष्य के काम आयेगा

रक्त दान से जीवन किसी का बच जाएगा  

इससे बड़ा दान और क्या कोई हो पायेगा

रक्त दान कर लो यह जान

हुई जीवन सुरक्षा बची है जान  

रक्त दान करने से महायज्ञ मिलता पुन्य

बनता इससे मनुष्य का जीवन धन्य l

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श्याम कुमार कोलारे

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