
वहीं
विज्ञान और धर्म की जानकारी रखनेवाले लोगों का मानना है कि एक ही गोत्र में शादी
करने की मनाही इसलिए है ताकि अनुवांशिक दोष अगली पीढ़ी में न आएं। एक ही कुल या
गोत्र में विवाह करने पर उस कुल के दोष, बीमारी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित होती है। इससे
बचने के लिए तीन गोत्र छोड़कर विवाह किया जाता है। साथ ही अलग गोत्र में विवाह
करने से आनेवाली पीढ़ी में बच्चे ज्यादा विवेकशील होते हैं ।वास्तविक
रूप में सगोत्र विवाह निषेध चिकित्सा विज्ञान की 'सेपरेशन ऑफ जींस'
की मान्यता पर आधारित है। कई
वैज्ञानिक अनुसंधानों के बाद यह निष्कर्ष प्राप्त किया गया है कि यदि करीब के रक्त
संबंधियों में विवाह होता है तो अधिक संभावना है कि उनके जींस (गुणसूत्र) अलग न
होकर एक समान ही हों । एक
समान जींस होने से उनसे उत्पन्न होने वाली संतान को कई गंभीर बीमारियों जैसे
हीमोफीलिया, रंग-अंधत्व आदि के होने की आशंका बढ़ जाती है इसलिए हमारे
शास्त्रों द्वारा सगोत्र विवाह निषेध का नियम बनाया गया था किंतु कई समाजों में
निकट संबंधियों में विवाह का प्रचलन होने के बावजूद उन दंपतियों से उत्पन्न हुई
संतानों में किसी भी प्रकार की गंभीर बीमारी नहीं पाई गई । मेरे
देखे वर्तमान समय में इस प्रकार के नियमों को उनके वास्तविक रूप में देखने की
आवश्यकता है। यह नियम यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों पर आधारित होकर यदि केवल रक्त
संबंधियों तक ही सीमित रहे तो बेहतर है किंतु देखने में आता है कि सगोत्र विवाह
निषेध के नाम पर ऐसे रिश्तों को भी नकार दिया जाता है जिनसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी में कोई
रक्त संबंध नहीं रहा है।
हमारी
धार्मिक मान्यता तो इसे गलत ठहराती ही है, पर साथ ही कहीं न कहीं विज्ञान भी इस प्रतिबन्ध
को स्वीकारता है l ऐसा प्रतिबंध इसलिए लगाया गया है क्योंकि एक ही गोत्र या
कुल में शादी-विवाह करने करने पर दम्पति की संतान आनुवांशिक दोषों के साथ पैदा
होती है l ऐसे दम्पतियों की संतानों में एक सी विचारधारा होती है, कुछ नयापन देखने को
नहीं मिलता l महान विचारक ओशो का इस बारे में कहना था कि विवाह जितनी दूर
हो उतना अच्छा होता है, क्योंकि ऐसे दम्पति की संतान गुणी और प्रभावशाली
होती है l
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्त्ता, भोपाल
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