जीवन की नैया अब पार तो लगाओ

जीवन की नैया अब पार तो लगाओ

जीवन की नैया अब पार तो लगाओ

 






अब बहुत हो गई आँख मिचौली

जिन्दगी बन गई एक ठिठोली

मनुष्य से मनुष्य रख रहा है दूरी

अब दूर से दूर हो रही जिम्मेदारी  

अपने को अपनों से यूँ दूर न कराओ

जीवन की नैया अब पार तो लगाओ

 

उजड़ गई वो सुन्दर सी बगियाँ

जहाँ मिलती थी शीतल सी छैयाँ

जिसमे पुष्प नित्य खिलते थे

बाल किलकारी मिश्री से लगते थे

सूखी वो बगिया में चहल तो कराओ

जीवन की नैया अब पार तो लगाओ

 

कभी दर पे तेरे आस्था कतार थी

तेरे मूरत की लगी रहती आस थी

सबके लिए तू कृपा निधान थी

हर काज की तू खेवन हार थी

जैसे भी हो अब मेहर तो दिखाओं

जीवन की नैया अब पार तो लगाओं

 

इस हवा के कहर से कहर उठी दुनिया

जान के डरसे अब सहम उठी मुनिया  

धरा सारी बन गई है भीषण कोई रण

जीवन अस्त का नही कोई क्षण  

अपना अद्रश्य बाण यूँ न चलाओ

जीवन की नैया अब पार तो लगाओं

 

श्याम कुमार कोलारे

चारगांव प्रहलाद, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)

मोबाइल 9893573770

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