समाज का विकास किसी एक व्यक्ति की शक्ति से नहीं, बल्कि सामूहिक प्रयासों और सही दिशा देने वाले नेतृत्वकर्ता से संभव होता है। नेतृत्व केवल पद या अधिकार का नाम नहीं है, बल्कि सेवा, संवेदनशीलता, समर्पण और दूरदृष्टि का प्रतीक है। वह व्यक्ति जो समाज के हर वर्ग को जोड़कर साथ लेकर चले, समाज उत्थान का वास्तविक मार्गदर्शक बनता है।
दूसरा गुण है- अनुशासन और नियम-पालन। योजनाएँ तब ही सफल होती हैं जब उनमें समयसीमा, पारदर्शिता और अनुशासन हो। एक अनुशासित नेता निरंतरता के साथ कार्य करता है, समय पर निर्णय लेता है और समाज में विश्वास तथा व्यवस्था स्थापित करता है। अनुशासनहीन नेतृत्व समाज में भ्रम और अव्यवस्था को जन्म देता है, इसलिए नियम पालन उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।नेतृत्व के लिए आदर और समर्पण भी उतना ही आवश्यक है। समाज का प्रत्येक वर्ग सम्मान का पात्र है। बच्चा, युवा, महिला या बुजुर्ग- हर व्यक्ति अपने अनुभव और दृष्टिकोण से समाज को मजबूत बनाता है। जो नेता सभी के प्रति आदरभाव रखता है, वही सभी को साथ लेकर चल पाता है। समर्पण का अर्थ है- समाज हित को अपने व्यक्तिगत हित से ऊपर रखना और जरूरत पड़ने पर स्वयं को समर्पित करना। समावेशी नेतृत्व- समाज उत्थान का आधार। समाज तभी उन्नति करता है जब नेतृत्वकर्ता समाज के हर वर्ग को महत्वपूर्ण समझे। सर्वसमावेशी नेतृत्व वह है जिसमें सभी को सुझाव देने, विचार रखने और निर्णय प्रक्रिया का हिस्सा बनने का अवसर मिले। एक सुदृढ़ नेता वह होता है जो सबकी सुनता है, पर निर्णय विवेक से लेता है, और आवश्यकता पड़े तो जानकार सलाहकारों से राय लेकर आगे बढ़ता है। इसका अर्थ यह नहीं कि हर बात पर सहमति जरूरी है, बल्कि यह कि समाज की आवाज़ को सुना जाए और विचारों को महत्व दिया जाए। अक्सर नेता अपने सुख-संतोष, प्रशंसा या व्यक्तिगत निर्णयों के कारण कुछ लोगों से दूरी बना लेते हैं, जिससे समाज में अविश्वास और खाई बनती है। एक सही नेता वह है जो इन दूरियों को कम करे, सभी को साथ जोड़े और विभाजन नहीं, एकता की नींव मजबूत करे।
नेतृत्व पद की मर्यादा और जिम्मेदारी- नेतृत्व का पद समाज का दिया हुआ विश्वास है, न कि निजी उपलब्धि। परंतु कई बार यह पद व्यक्ति में लोभ या स्थायी बने रहने का मोह पैदा कर देता है। पद का मोह नेतृत्व को कमजोर कर देता है और निर्णय समाज हित से हटकर व्यक्तिगत हित की ओर मुड़ जाते हैं। नेतृत्व का मुख्य सिद्धांत यह है कि नेता को लोग बनाते हैं, इसलिए उसकी पहली जिम्मेदारी लोगों के प्रति समर्पित रहना है। यदि नेता को एक ही पद पर लंबे समय तक बने रहने की चाह है तो उसे अपने कार्यों और नैतिकता के आधार पर समाज की नजरों में अपनी सच्ची पहचान बनानी होगी, न कि केवल पद के सहारे टिके रहना। युवाओं और बुजुर्गों का संतुलित योगदान- एक समृद्ध समाज का निर्माण तभी संभव है जब युवाओं और बुजुर्गों- दोनों को उचित स्थान मिले। युवा ऊर्जा, नवीन सोच और सक्रियता का प्रतिनिधित्व करते हैं। बुजुर्ग अनुभव, विवेक और दूरदृष्टि के प्रतीक होते हैं। नेतृत्वकर्ता का दायित्व है कि वह इन दोनों के बीच सेतु का कार्य करे। युवाओं की ऊर्जा को सही दिशा देना और बुजुर्गों के अनुभव का उपयोग करना- इन्हीं दोनों से समाज की मजबूत नींव तैयार होती है।
कार्ययोजना, लक्ष्य और नियमित समीक्षा- समाज विकास केवल भाषणों या घोषणाओं से नहीं होता, बल्कि ठोस योजनाओं और सतत समीक्षा से संभव होता है। समाज के मासिक या वार्षिक लक्ष्य निर्धारित होना चाहिए। कार्यों की समय-समय पर समीक्षा होनी चाहिए। नेतृत्वकर्ता को स्वयं भी आत्म-मूल्यांकन करना चाहिए। समीक्षा से यह स्पष्ट होता है कि किस दिशा में मजबूती है और किन क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता है। एक सशक्त नेता वह है जो अपनी गलतियों को पहचानकर सुधार करता है, न कि उनसे बचने का प्रयास करता है। समाज विकास का वास्तविक अर्थ- समाज उत्थान केवल भौतिक विकास तक सीमित नहीं है। वास्तविक विकास वह है जिसमें- भाईचारे का विस्तार हो, आपसी विश्वास बढ़े, प्रतिभाओं को अवसर मिले, जरूरतमंदों तक मदद पहुँचे, शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति और रोजगार को बढ़ावा मिले। यह तभी संभव है जब नेतृत्वकर्ता स्वयं को समाज का सेवक माने, शासक नहीं। समाज उत्थान की असली कुंजी आदर्श नेतृत्व है- ऐसा नेतृत्व जो संयमित, अनुशासित, समावेशी, ईमानदार और दूरदर्शी हो। जो समाज को जोड़ने की कला जानता हो, पद से अधिक सेवा को महत्व देता हो और युवाओं तथा बुजुर्गों दोनों की क्षमता को समझकर उनका उचित उपयोग करता हो। जब नेतृत्वकर्ता समाज को परिवार की तरह देखता है और हर निर्णय समाज हित में लेता है, तभी समाज वास्तविक विकास, एकता और उत्थान की ओर अग्रसर होता है।
श्याम कुमार कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (मध्यप्रदेश)

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