shyamkolare@gmail.com
महिला समाज की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है, क्योंकि उसके बिना किसी भी सभ्यता, संस्कृति या समाज की कल्पना संभव नहीं है। महिला केवल एक शरीर नहीं, बल्कि भावनाओं का अथाह सागर, त्याग की प्रतिमूर्ति और प्रेम की वह शक्ति है जो घर, परिवार और समाज को जीवन देती है। वह बेटी बनकर आशा, बहन बनकर विश्वास, पत्नी बनकर साथ और माँ बनकर सृष्टि का आधार होती है। लेकिन इस महान भूमिका के बावजूद दुखद सच्चाई यह है कि वही स्त्री, जो दुनिया को जीवन देती है, आज भी हिंसा, अपमान और चुप्पी के बोझ तले दबी हुई है। समाज समानता, नारी सम्मान और आधुनिक सोच की बातें तो बहुत करता है, लेकिन जब बात वास्तविकता की आती है, तो स्त्री की स्थिति आज भी उतनी ही पीड़ादायक और चिंताजनक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट इस क्रूर सच्चाई को उजागर करती है कि भारत में करीब 30 प्रतिशत महिलाएं अपने पति या साथी द्वारा हिंसा का शिकार हुई हैं। यह आंकड़ा केवल संख्या नहीं, बल्कि लाखों टूटे सपनों, अनसुनी चीखों और मौन पीड़ा का प्रतीक है। रिपोर्ट के अनुसार 15 से 49 वर्ष की हर पांचवीं महिला मानसिक, आर्थिक, शारीरिक या यौन हिंसा सह रही है। यह वही आयु है जब महिलाएं जीवन निर्माण, आत्मसम्मान, परिवार और भविष्य की नींव रखती हैं, परंतु यही समय उनके लिए सबसे अधिक असुरक्षा और पीड़ा लेकर आता है।
हिंसा की शुरुआत हमेशा घावों और चीखों से नहीं होती। यह पहले मनोवैज्ञानिक बंधनों से शुरू होती है—तानों से, शक से, नियंत्रण से, आवाज़ दबाने से, निर्णय छीनने से और फिर धीरे-धीरे यह अपमान, मारपीट, यौन शोषण और मानसिक हिंसा का रूप ले लेती है। और जब स्त्री विरोध करती है, तो समाज उसी से सवाल करता है। उसे समझाया जाता है—“पति है, अधिकार है”, “घर की बात घर में रहे”, “थोड़ा सहन करो, सब ठीक हो जाएगा।” इस तरह धीरे-धीरे उसकी आवाज़, उसका आत्मविश्वास और उसका अस्तित्व खोने लगता है।
लेकिन अब समय बदलने का नहीं, बदलाव लाने का समय है। स्त्री का कर्तव्य सहना नहीं, बल्कि सम्मान के साथ जीना है। उसे अनुमति नहीं, अधिकार चाहिए। उसे दया नहीं, समानता चाहिए। उसे चुप्पी नहीं, अपनी आवाज़ चाहिए। अब आवश्यक है कि बेटियों को सिर्फ सजना-संवरना नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए बोलना, लड़ना और खुद का सम्मान करना सिखाया जाए। और बेटों को यह समझाना होगा कि स्त्री कोई वस्तु नहीं, बल्कि सम्मान, स्वतंत्रता और अधिकारों से पूर्ण मानव है।
यह लेख केवल आंकड़ों का विश्लेषण नहीं, बल्कि उन सभी महिलाओं की आवाज़ है जो वर्षों से दर्द में भी जी रही हैं, जो टूटीं लेकिन झुकी नहीं, जिन्होंने दर्द सहा लेकिन उम्मीद नहीं छोड़ी। यह उन महिलाओं की पुकार है जो आज कह रही हैं—“अब और नहीं।” अगर आज समाज, व्यवस्था और सोच नहीं बदली, तो आने वाला समय और अधिक भयावह होगा। लेकिन यदि आज से जागरूकता, सम्मान और न्याय की दिशा में कदम बढ़ें, तो वह दिन दूर नहीं जब हर स्त्री भय में नहीं, बल्कि गरिमा, समानता और सुरक्षा के साथ जीवन जी सकेगी। क्योंकि जब स्त्री सुरक्षित होती है, तभी परिवार सुरक्षित होता है, जब परिवार सुरक्षित होता है, तब समाज मजबूत होता है, और जब समाज मजबूत होता है, तब एक सशक्त, संवेदनशील और समानता पर आधारित राष्ट्र जन्म लेता है।
श्याम कोलारे
सामाजिक कार्यकर्ता, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)
9893573770

0 टिप्पणियाँ
Thanks for reading blog and give comment.