हमने भी देखा है नूर
किसी बेसब्र आँखों में
मंजिल की मुकम्मल खोज
देखा हर साँसों में
रास्ता कठिन हो जितना भी,
फिक्र न कर जीतेगा
कामयाबी की धुन रखता
अश्क भरी आसों में।
कभी गिरते, कभी सँभालते,
कभी खुद को उठते देखा
कभी रास्तों में खुद को
अनायास भटकते देखा
कभी भीड़ में भी अकेला
बेसुध बेखबर सा
अपने में ही उलझते हुए
और कभी सुलझते देखा।
बहुत दिनों तक खोजा जिन्दगी
अक्स मिला कुछ थोड़ा
कही तो साहिल होगा मेरा
पतवार चलाना न छोड़ा।
बस एक आरजू है मेरी- हे रब,
नाम मेरा भी लिख जाए
तेरी हर दिन की हाजरी में,
नाम मेरा भी आ जाये।
©®श्याम कोलारे

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