डॉ. परशुराम आठनेरिया “द लीजेंड शालाकी पुरस्कार” से सम्मानित

डॉ. परशुराम आठनेरिया “द लीजेंड शालाकी पुरस्कार” से सम्मानित

डॉ. परशुराम आठनेरिया "द लीजेंड शालाकी पुरस्कार” से सम्मानित

आयुर्वेद के विशाल जगत में कुछ ऐसे नाम हैं जो अपनी विद्वत्ता, सादगी और सेवा भावना से पीढ़ियों तक स्मरणीय रहते हैं। एसोसिएशन ऑफ शलाकी (TAS) इंडिया द्वारा प्रदत्त “चार्टर ऑफ ऑनर” इसी गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। इस चार्टर के अंतर्गत माननीय डॉ. परशुराम आठनेरिया को “लीजेंड शलाकी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान न केवल उनके असाधारण शैक्षणिक और चिकित्सीय योगदान का प्रतीक है, बल्कि यह उनके उस जीवन दर्शन की भी स्वीकृति है जिसमें “सेवा ही सर्वोच्च साधना” मानी गई है।

शिक्षा और आरंभिक जीवन  - 9 जून 1948 को मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले के चिखलिकलां ग्राम में जन्मे डॉ. आठनेरिया का जीवन अत्यंत प्रेरणादायक रहा है। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े इस प्रतिभाशाली बालक ने अपने संकल्प और लगन से आयुर्वेद जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई। उन्होंने रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर से 1975 में बी.ए.एम.एस. की उपाधि प्राप्त की और आगे चलकर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय* से 1986 में एम.डी. (आयुर्वेद) शालाक्य तंत्र में पूर्ण की। यह यात्रा केवल शिक्षा की नहीं, बल्कि निरंतर आत्म-विकास और मानव सेवा के प्रति समर्पण की रही।

चार दशकों का गौरवशाली करियर : डॉ. आठनेरिया ने मध्यप्रदेश शासन के आयुष विभाग में लगभग चार दशकों तक अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने सहायक प्राध्यापक से लेकर प्राचार्य तक के सभी पदों पर कार्य करते हुए अनगिनत विद्यार्थियों को न केवल शालाक्य तंत्र की गूढ़ विद्याओं में पारंगत किया, बल्कि उनमें करुणा और मानवता का संस्कार भी भरा।  

शलाक्य तंत्र के अंतर्गत उन्होंने  एक हज़ार से अधिक नेत्र शल्य क्रियाएं सफलतापूर्वक संपन्न कीं। उनके नैदानिक अभ्यास में क्रियाकल्प चिकित्सा और क्षारसूत्र चिकित्सा (अर्श एवं भगंदर) के समन्वय ने पारंपरिक और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों का अद्भुत संगम प्रस्तुत किया। उनके कार्य ने यह सिद्ध किया कि आयुर्वेदिक चिकित्सा केवल परंपरा नहीं, बल्कि आधुनिक समय की आवश्यकताओं के अनुरूप एक जीवंत विज्ञान है। 

शैक्षणिक नेतृत्व और मार्गदर्शन : एक शिक्षक के रूप में डॉ. आठनेरिया का योगदान अप्रतिम रहा। उन्होंने पाठ्यक्रम विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई विश्वविद्यालयों के अध्ययन बोर्डों के सदस्य के रूप में नीतिगत निर्णयों में योगदान दिया। उनके निर्देशन में अनेक स्नातकोत्तर विद्यार्थियों ने शोध कार्य पूर्ण किए और आज वे स्वयं चिकित्सा जगत में उल्लेखनीय स्थान बनाए हुए हैं।  

डॉ. आठनेरिया अपने विद्यार्थियों के लिए केवल एक अध्यापक नहीं, बल्कि एक प्रेरक गुरु रहे हैं। वे हमेशा कहते थे — “शिक्षा केवल ज्ञान का प्रसार नहीं, बल्कि संवेदना का विस्तार है।”


मानवीय सेवा का उदाहरण : डॉ. आठनेरिया का जीवन केवल कक्षाओं और ऑपरेशन थिएटर तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने अनेक निःशुल्क चिकित्सा शिविरों और नेत्र शिविरों में अपनी सेवाएं दीं। विशेष रूप से 1991 की नर्मदा बाढ़ के दौरान उन्होंने सैकड़ों प्रभावित परिवारों को निःशुल्क चिकित्सा और सहयोग प्रदान किया। उनके इस मानवीय दृष्टिकोण ने यह सिखाया कि एक चिकित्सक का वास्तविक धर्म सेवा में निहित है।

लेखन और अनुसंधान : डॉ. आठनेरिया न केवल कुशल चिकित्सक और अध्यापक हैं, बल्कि एक प्रखर लेखक भी हैं। उन्होंने आयुर्वेद और शालाक्य तंत्र पर कई ग्रंथों की रचना की है, जिनमें “सचित्र अभिनव नेत्र विज्ञान (शलाक्य तंत्र)” विशेष रूप से प्रसिद्ध है। उनकी रचनाएँ चिकित्सा विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए अमूल्य मार्गदर्शक सिद्ध हुई हैं। उन्होंने जटिल विषयों को सरल भाषा में प्रस्तुत कर ज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया।

राष्ट्रीय सम्मान — “लीजेंड शालाकी पुरस्कार”: आयुर्वेद के क्षेत्र में उनके समर्पण और उपलब्धियों को देखते हुए एसोसिएशन ऑफ शालाकी (TAS) इंडिया ने उन्हें “लीजेंड शालाकी पुरस्कार” से सम्मानित किया। यह सम्मान 31 अक्टूबर 2025 को होटल सेंटर पॉइंट, रामदास पेठ, नागपुर (महाराष्ट्र) में आयोजित शलाक्य तंत्र के 30वें राष्ट्रीय सम्मेलन “सिनर्जी 2025” में प्रदान किया गया। यह क्षण न केवल डॉ. आठनेरिया के लिए, बल्कि समूचे आयुर्वेद परिवार के लिए गौरव का था। उनके सम्मान से यह संदेश गया कि समर्पित प्रयास, ईमानदार सेवा और निस्वार्थ भावना से किया गया कार्य सदैव समाज द्वारा सराहा जाता है।


एक प्रेरक व्यक्तित्व: डॉ. परशुराम आठनेरिया का जीवन एक ऐसी गाथा है, जिसमें ज्ञान, सेवा, संवेदना और साधना के चारों स्तंभ पूर्ण संतुलन में हैं। वे न केवल चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में प्रकाशस्तंभ हैं, बल्कि नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा के स्रोत भी हैं। उनका कार्य यह सिद्ध करता है कि जब व्यक्ति अपने कर्म को सेवा का माध्यम बना लेता है, तब वह स्वयं एक “लीजेंड” बन जाता है। “लीजेंड शालाकी पुरस्कार” केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि उस जीवन का उत्सव है जिसने आयुर्वेद को जीया, सिखाया और समाज की भलाई के लिए समर्पित किया।  डॉ. आठनेरिया सचमुच उस वाक्य को सार्थक करते हैं —  “जहाँ सेवा है, वहीं अमरता है।”


लेखक

श्याम कुमार कोलारे, छिंदवाड़ा, मध्यप्रदेश


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