काश कलम में कोई, अद्भुत तेज आ जाता
लिखते-लिखते, मैं साहित्यकार बन जाता
लेखनी में कोई ऐसा, प्रभाव आ जाता
मेरे हर शब्द में कविता सा, झरना बह जाता ।
मेरी कलम से, भावना की गहराई झलके
छन्दों के श्रृंगार से, मेरी पंक्ति दमके
हर शब्द ज्ञान का, भंडार हो जाता
काव्यों में रसों का, अद्भुत संचार हो जाता ।
एक-एक अक्षर गागर में, सागर बन जाता
कम कहे और बोल ज्यादा,सार हो जाता
ये किसी के मन के, तार छेड़ जाता
सुरों-तरंगों में सजे शब्द, संगीत हो जाता ।
खूब करें मन डूबने का, काव्य रस में हमारा
मन में भाव का जैसे कोई, बादल उमड जाता
कंठ में छन्दों का कोई, सहलाव बह आता
साहित्य सागर में डूबकर, खूब गोते लगाता ।
जड़ बुद्धि श्या की, मन परख नहीं पाता
काव्य सागर के किनारे, पाँव डाले इतराता
बालपन की लेखनी, ये मन को समझाता
काश लेखनी के सहारे, कव्यसागर पार हो जाता ।
कवी/लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाडा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770
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