मुरली मनोहर कान्हा

मुरली मनोहर कान्हा

#shyamkumarkolare 

कान्हा तेरी मुरलीमधुर बाजे बोल

यमुना के तट पर, ये गूंजे चारों ओर

गोपिका के मन की, बनी है चितचोर

बादल देखे नाचे है, जैसे वन में मोर ।

 

मुरली ऐसे बाजे , मन के तार ये सजाये

सात सुरों के संगम से, संगीत बन जाए

होठों पर ऐसी साजे, अधिकार ये जमाए

गोपीओं के मन में, ये हलचल यह मचाए ।

 

कान्हा की है प्यारी, सदा संग में है विराजी

इसकी धुन के आगे, सब इसके पीछे भागे

वृंदावन सुर में नाचे, श्याम रास है रचाए

दोस्तों के बीच में ये, कान्हा सी बन जाए ।

 

बालरूप मनोहर श्यामा, आनंद से भर जाए

सुंदर मुखड़ा कान्हा, आंखों से ना हट पाए

तोतली बोली से ये, सबको मन बहलाए  

मुरली की तान से, चमत्कार ये दिखाए ।

 

कौन ना जाने श्यामा, सबका खेवन हार है

पापी-दुष्टों का, यह पल में करे संहार है

सबकी नैया को यह,पल में पार लगाए

इसीलिए तो कान्हा, सबके मन को भाए ।

 

फिर से आओ कान्हा, दरस तो दिखाओ

अपनी भक्ति से हमको,  मुग्ध कर जाओ

छवि ऐसी बारी है, मुग्ध हुई दुनिया सारी

पुकारे श्री श्यामा, तुम जल्दी से आ जाओ ।

 

अंधियारी काली रातों में डर भरा है भारी

विनती करे है हम सब, अब तुम्हारी है बारी

कृपा ऐसी कर दो, हमारे मन में बस जाओ

जल्दी आओ कान्हा, अब देर ना लगाओ ।

 

 

कवि / लेखक

श्याम कुमार कोलारे

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ