हर स्कूल में NCERT की किताबें अनिवार्य करने से अभिभावकों का आर्थिक बोझ होगा कम

हर स्कूल में NCERT की किताबें अनिवार्य करने से अभिभावकों का आर्थिक बोझ होगा कम


हर स्कूल में NCERT की किताबें अनिवार्य करने से अभिभावकों का आर्थिक बोझ होगा कम 

भारत में शिक्षा न केवल एक मौलिक अधिकार है, बल्कि एक मजबूत राष्ट्र की नींव भी है। हालांकि, वर्तमान समय में निजी स्कूलों द्वारा पुस्तकों, यूनिफॉर्म और फीस के नाम पर अभिभावकों पर डाले जाने वाले आर्थिक बोझ ने इस अधिकार को एक महंगे सौदे में बदल दिया है। ऐसे में मध्यप्रदेश के जबलपुर कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा लिया गया यह निर्णय कि जिले के सभी CBSE स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक केवल NCERT की किताबें ही पढ़ाई जाएंगी, एक स्वागत योग्य और दूरदर्शी कदम है। यह निर्णय न केवल शिक्षा व्यवस्था को पारदर्शी और समान बनाएगा, बल्कि अभिभावकों पर पड़ने वाले अनावश्यक आर्थिक दबाव को भी काफी हद तक कम करेगा।

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा प्रकाशित किताबें पूरे देश के लिए एक समान पाठ्यक्रम प्रदान करती हैं। ये किताबें न केवल शिक्षा के मानकों के अनुसार तैयार की जाती हैं, बल्कि इनकी लागत भी बहुत कम होती है। एक सामान्य कक्षा 6 की NCERT किताबों का पूरा सेट लगभग 300-400 रुपये में मिल जाता है, जबकि यही सेट अगर निजी प्रकाशकों से खरीदा जाए तो उसकी कीमत 1500 रुपये से लेकर 3000 रुपये तक हो सकती है।बहुत से निजी स्कूल अभिभावकों को विशेष प्रकाशकों की किताबें खरीदने के लिए बाध्य करते हैं, जिनकी कीमत न केवल ज्यादा होती है, बल्कि उनमें अतिरिक्त और अनावश्यक सामग्री भी होती है जो छात्रों के लिए जरूरी नहीं होती। स्कूल और प्रकाशकों के बीच गठजोड़ के कारण ये किताबें अक्सर उन्हीं स्कूल के कैंपस या चुने गए बुकस्टोर्स में ही मिलती हैं, जिससे अभिभावकों के पास कोई विकल्प नहीं बचता। NCERT किताबों को अनिवार्य करने से इस तरह की मनमानी पर अंकुश लगेगा और शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता बढ़ेगी।

किसी भी मध्यमवर्गीय या निम्न आय वर्ग के परिवार के लिए शिक्षा पर खर्च एक बड़ी चुनौती होती है। स्कूल फीस के अलावा यूनिफॉर्म, स्टेशनरी और खासकर किताबों की कीमत साल दर साल बढ़ती जा रही है। यदि एक छात्र की किताबों पर 3000 रुपये का खर्च आता है और वही खर्च NCERT किताबों से घटकर 400 रुपये रह जाता है, तो एक ही बच्चे पर करीब 2600 रुपये की बचत होती है। यदि किसी परिवार में दो या तीन बच्चे पढ़ रहे हों, तो यह आंकड़ा 8000 रुपये से ज्यादा हो सकता है। ऐसे में यह फैसला सीधे-सीधे आर्थिक राहत लेकर आता है।NCERT किताबों का उपयोग करने से सभी छात्रों को एक समान शैक्षणिक आधार मिलता है। इससे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को भी लाभ होता है क्योंकि अधिकांश राष्ट्रीय परीक्षाएं (जैसे NEET, JEE, UPSC) NCERT पाठ्यक्रम पर आधारित होती हैं। इससे शिक्षा में समानता और गुणवत्ता दोनों बढ़ती है, और निजी स्कूलों द्वारा बनाई जा रही “एलिट शिक्षा” की दीवारें कमजोर होती हैं।

जबलपुर कलेक्टर द्वारा सभी CBSE स्कूलों को अपनी वेबसाइट पर निर्धारित किताबों की सूची सार्वजनिक रूप से प्रकाशित करने का निर्देश दिया गया है। साथ ही, यदि कोई स्कूल NCERT के अलावा अन्य किताबें चलाना चाहता है तो उसे कारण स्पष्ट करना होगा। यह पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और अभिभावकों को स्कूल प्रशासन के निर्णयों पर सवाल उठाने का अधिकार देता है। इस निर्णय से ना केवल जबलपुर, बल्कि अन्य जिलों और राज्यों को भी प्रेरणा मिलेगी कि वे अपनी शिक्षा व्यवस्था में सुधार करें। यदि पूरे देश में यह नियम लागू होता है, तो भारत में शिक्षा की लागत में व्यापक कमी आएगी और ज्यादा से ज्यादा बच्चों को सुलभ और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सकेगी।

हर स्कूल में NCERT की किताबों को अनिवार्य करना एक ऐसा फैसला है जो अभिभावकों के लिए आर्थिक रूप से राहतकारी है, शिक्षा में समानता लाने वाला है और निजी स्कूलों की अनावश्यक मनमानी पर लगाम लगाने वाला भी है। यह सिर्फ किताबों की बात नहीं है, यह शिक्षा को सुलभ, सस्ती और समान बनाने की दिशा में एक बड़ा और साहसिक कदम है। उम्मीद की जानी चाहिए कि देशभर के शिक्षा विभाग जबलपुर से सीख लेकर इस नीति को व्यापक रूप से अपनाएंगे, ताकि भारत का शिक्षा क्षेत्र वास्तव में सबके लिए हो – न कि केवल सक्षम लोगों के लिए।


- श्याम कुमार कोलारे


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