भोर हुआ जीवन है जागा morning is life

भोर हुआ जीवन है जागा morning is life


गुंजित कलरव चहकते खग आई सुहानी बेला,
भोर हुई सब नीड में जागे, दिनचर्या हुई आगे,
थामे पंख को फिर फैलाने, नन्ही चिड़िया जागी,
आसमाँ की गहराई मापने, चलदी पर को आगे।

सुहावन हवा चले है नभ में, तरु  हिलोरे खाते,
पवन झकोरे मारे ऐसे कंपकपी, छुबन जगाने,
चींटी की कतार लगी अब, मेहनत लगी बरसाने,
मक्खी की पंक्ति चली है, पुष्प मधुरस चुराने।

सुंदर सुखद प्रभात हुआ, भ्रमर लगा गुनगुनाने,
गिलाई बाग में फुदक रही है, पुष्प लगे मुस्कानें,
प्रभात किरण पड़े धरा पर, जागा जगत है सारा,
सूर्य बिखेरे सुनहरी घटा, जीवंत करे संसारा ।

जैसे-जैसे भानू बढ़ता, बढ़ती सबकी आस,
इस धरा में जीवन सबका, साँसे मिली है खास,
चौपाया के अब बढ़ते पग, वन दिशा को जाते,
श्याम सखा स्वागत है करते, मुरली मधुर बजाते।

दिन चला रात पुरानी, स्वप्न हुआ सब  भूतकाल,
दिन में दिनकर राजा बन, रजनी रात की रानी,
दूर हुआ अंधकार का साया, हर्षित हुई है आभा,
स्वागत करें सब रवि का, लगी धरा मुस्कानें।


लेखक
श्याम कुमार कोलारे
चारगांव प्रहलाद, छिंदवाड़ा (म.प्र.)
मोबाइल 9893573770

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ